आजा लौट
के चंद पलो के लिये
आखरी जो सांसे
बची है मेरी...
साथ
गुज़ारे.
वोही
रास्तो से चल पड़े फिर हम
उसि मौड़
उसि गलियों से
साथ
गुज़रे.
मिले
वक़्त बे-वक़्त पहेले कि तरह
वजह
बे-वजह हंस पड़े
रुठने
मनाने का सिलसिला
फिर एक
बार दोहराये.
बे-फिक्र
इस ज़माने से
कुछ पल
फिर ख्वाबो मे जीये.
कुछ वादे
इस बार भि किये जा तु...
निभाने
कि जरुरत नहि
कुछ
सुकुन इस दिल को मिल जाये
इंतेज़ार
के लिये अब वक़्त नहीं.
आखरी जो
सांसे बची है
तेरे
दीदार तेरि आवाज़ से महक जाये
आजा लौट
के चंद पलो के लिये
ज़िंदगी
ना सही...
सुकुन कि
मौत तो मिले.
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